Wednesday 25 January 2012

हम आज़ाद हैं

"हम आज़ाद हैं "

आवारा बादल
मनचलों के जैसे
उड़ा जा रहा है
अचानक एक अवरोध
एक विशाल पर्वत
उसका मार्ग रोकता
जिसके विरोध में
वो गरजता है
बिजली के तीखे बाण
चलाता है
उसे चूर चूर कर देने के लिए
और उसे बहा डालने के
निम्मित उसमे
बारिश करने लग जाता है
फिर थकता है
और पूरी शक्ति के साथ पुनः
आता है
वो जानता है
पर्वत अडिग है
फिर भी हार नहीं मानता है
हवा के साथ मिलकर
आंधी तूफ़ान भी साथ में ले आता है
जबकि वो जानता है
पर्वत अडिग है
फिर नदियों को भी
उफान देता है
बाढ़ आंधी तूफ़ान मूशलाधार वर्षा
के साथ फिर आक्रमण करता है
और पर्वत के किनारों को काट
अपने अस्तित्व का एहसास कराता है
वो हार नहीं मानता है
आखिर बंदिशें
किसे अच्छी लगती हैं
.
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लेकिन हमने
बंदिशों को अपना लिया है
हम गुलामी परस्त हो चुके लोग
किसी का विरोध नहीं करते हैं
क्यूंकि हम आज़ाद हैं
केवल सरकारी पन्नो के आधार पर
हमें आदत है सब कुछ
मौन चीख के साथ
सहन करने की
क्यूंकि हम इंसान है
बुद्धिजीवी हैं
हम दोषों का अवलोकन तो कर लेते हैं
लेकिन उसे जल्द अपना भी लेते हैं
क्यूंकि हम इंसान है
हाँ आज़ाद इंसान
बिलकुल मच्छरों की तरह
भिनभिनाते संगीत सुनाने
विचार रखने के लिए आज़ाद
किन्तु अपने आस्तित्व को
दिखाने पर मिलती है
सजा  सजा-ए-मौत
हम आज़ाद है परिंदों की तरह
जिसे पकड़ने के लिए
बहेलिया जाल बिछाए बैठा है
हम आज़ाद है
जल में उस मछली की तरह
जो आवश्यकता पड़ने पर
भोजन बन जाती है
हम आज़ाद हैं
उन्ही आवारा बादलों की तरह
फर्क इतना है
के वो विरोध करना जानते हैं
और हम बंदिशों में जीना
हम आज़ाद हैं
किन्तु हमें आज़ाद जीने की आज़ादी नहीं है

संदीप पटेल "दीप"

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