Saturday 21 January 2012

दिलों में आज कोई शम्मा जलाओ तो जरा
लहू से फिर लहू का रंग मिलाओ तो जरा

जलेंगे आज भी दीपक लगेगी आग पानी में
दीयों को आज दीपक राग सुनाओ तो जरा

ज्ञानी शब्द भेदी का एक चौहान कलयुग में
अरे तुम देख कर एक तीर चलाओ तो जरा

मेहर-ओ-माह भी पाना कोई मुश्किल नहीं है
चश्म को आसमां के सपने दिखाओ तो जरा

अरे माँ बाप का सजदा कर लो अगर घर पे
कौन है मंदिर मस्जिद में ये बताओ तो जरा

धोना है पाप ही अगर तो गंगा क्यूँ जाना
तौबा का अश्क एक दिल से गिराओ तो जरा

ये तुम भी जानते हो मुल्क मिरा किसने है लूटा
मार के लात तो फिर उनको भगाओ तो जरा

तुम्हारे हाँथ की लकीर पे जो भी लिखा होगा
मिलेगा काम कर के इनको मिटाओ तो जरा

अरे क्यूँ सर्द हो गया तुम्हारे इश्क का जुनूं
"पटेल" फिर आग चाहतों की लगाओ तो जरा

संदीप पटेल

मित्रों समयाभाव की वजह से यदि कुछ त्रुटी हो तो अवश्य बता के अपनी प्रतिक्रिया दें

No comments:

Post a Comment