Thursday 26 January 2012

गणतंत्र दिवस के इस पावन अवसर पर आप सभी मित्रों को हार्दिक हार्दिक सुभकामनाएँ



अब आँखों में पानी की जगह हमको अंगारे भरने हैं
इन वहशत की अंधी गलियों में कुछ उजियारे भरने हैं

आतंकवाद की लपटों से जो उजड़ रहा है गुलशन ये
उजड़े उजड़े इस गुलशन में नए गुल भी न्यारे भरने हैं

कुंठा ले के क्यूँ जीना है क्यूँ घूँट जहर का पीना है
जो सूख चुके तालाब ह्रदय के उनके किनारे भरने है

अब शीश चढ़ा भारत माँ को अपनी कुर्बानी दे दे के
इस रिक्त हो चुके आसमान में हमको तारे भरने हैं

शोषण की इस गर्मी से जो भाव दिलों के सूख गए
अब सींच सींच के लहू जिस्म का भाव वो सारे भरने हैं

अब आँखों में पानी की जगह हमको अंगारे भरने हैं
इन वहशत की अंधी गलियों में कुछ उजियारे भरने हैं

संदीप पटेल "दीप"

No comments:

Post a Comment