Monday 16 January 2012

"काश"

"काश"

शीतल पुरबाई चल रही है

आसमान पे दिवाकर
चन्द्रमा सा प्रतीत होता
कम्कम्पाते बदन पे
स्वेटर , कोट सूट
आलाव जला जला के
घर की छतों पे खड़े
गुनगुनी धूप का लुत्फ़ लेते लोग
सर्दी में गुनगुनी सी तपिश पैदा करती
चाय की चुश्कियों
हांथों को रगड़ते
सिस्कारियां भरते
अपने प्रियतम की बाहों में
अपने मन को उत्साहित करते
मन में नव वर्ष
में नवीन कार्यों की सोच लिए
हर मन
पर कोई ऐसा भी है
जो इस सोच से परे कुछ और ही सोच रहा है
बसंत का सुहाना मौसम है
हर ओर त्योहारों की छटा है
सुन्दर फूल खिल रहे हैं
चहुँ ओर हरीतिमा ही छाई हुई है
ऐसा लगता है की ये
बसंत कभी ना जाए
प्रकृति की ये अनुपम छवि
ह्रदय में कहीं समा के रह जाए
हर मन यही सोच रहा है
कोई प्रियतमा के साथ
उल्लास मना रहा है
किसी को प्रियतमा की याद
सता रही  है
किसी को मौसम ने
अपने अनुपम अनुभव से
लालायित कर रखा है
सब मोहित है सृजनकर्ता के
इस अनुपम दृश्य से
हर मन ये सोच रहा है
के काश ये बसंत
पतझड़ का आगाज ना हो
बसंत आया है तो पतझड़ भी आएगा
पर कोई ऐसा भी है
जो इस सोच से परे कुछ और ही सोच रहा है
पृकृति के चक्र भला कौन तोड़ पाया है
पतझड़ आ ही गया
सब ओर सब्ज पत्ते
जमी पे कालीन की तरह
सजा गया
किन्तु सजर सारे नीरस से 
निराशा  का प्रतिबिम्ब से बने
मूक खड़े से
और हम
पृकृति की इस अनूठी सौगात पर
अपने आप को स्तब्ध खड़े
बस ये सोचते हैं
ये खिजाएँ कब जायेंगी
कब बहारें लौट के आयेंगी
पर कोई ऐसा भी है
जो इस सोच से परे कुछ और ही सोच रहा है
लो मौसम आ गया
गर्मी का
भीषण गर्मी
चिलचिलाती धूप
चमड़ी जलाती धूप
पसीने से तर करती धूप
हर ओर सूखा ही सूखा
नीरसता का पर्याय सा लगता
सब सोच रहे हैं
काश के कूलर होता
काश ऐ सी होता
हम कमरों पे बैठे
रहें बस
पर कोई ऐसा भी है
जो इस सोच से परे कुछ और ही सोच रहा है
लो सब कुछ सहते गर्मी भी निकल ही गयी
और टिप टिप बूंदों के साथ आ गया
एक और स्वप्न में विचरण करने का मौसम
बरसात का मौसम
हर व्यक्ति बारिश में सराबोर है
ताल तलैया पानी से लबालब भरे हुए हैं
हर ओर फिर से हरियाली
कमल कुमुदनी तालाब की सोभा बढ़ाते
चंचल प्रेमी जन
बारिश में अपनी प्रेयशी में डूबे हुए
मौसम का आनंद लेते
किश्तियाँ चलाते
किलकारियां मारते छोटे छोटे
प्यारे से बच्चे
कोई छाते की बारे में सोचते
कोई भजिये
चाय समोसे
कोई पकोड़े
कोई मेढकों की टर टर से मंत्र मुग्ध होता
कोई बादलों की बज रही ढोलक से
कोई बिजली के गिरने से
आश्चर्यचकित होता
कोई घर पे आराम के लुत्फ़ लेता
लेकिन कोई ऐसा भी है
जो ये सोच रहा है
काश मेरे घर पे छत होती
काश मेरे घर पे भी छत होती

संदीप पटेल

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