Monday 14 July 2014

ग़ज़ल

ग़ज़ल है इश्क की रौनक सनम की रानाई
बदन की शोख अदाओं से भरी अंगडाई

ग़ज़ल नफस में बसी कोई तरन्नुम प्यारी
 शबे विसाल में ज्यों बजती हुई शहनाई

गया जो डूब उसे थाह न मिली अब तक
ग़ज़ल कभी है समंदर तो कभी है खाई

गुलों का रंग ओ नजाकत गुहर है उसका तो
ग़ज़ल बहार में जैसे महकती अमराई

ग़ज़ल गुबार है दिल का तो कभी सादापन 
ग़ज़ल भटकते ख्यालों की कोई अँगनाई



संदीप कुमार पटेल "दीप"