Sunday, 9 October 2011

दिन रात ना अघाया देख ऐसा ख्वाब है

मेरे ख्याल अक्सर ये मुझसे पूछते हैं
सुबह क्या शाम क्या पियोगे तुम
नहीं यूँ थक के बैठ जाना इस जमाने से
थक गए जो ख़ाक फिर जियोगे तुम ...............SPS ............
 
दिन रात ना अघाया देख ऐसा ख्वाब है
बागों में खिला एक तू ऐसा गुलाब है ||
जिक्र जब जब हुआ तेरा जलवे सिमट गए
आसमां में कहीं निकला हुआ माहताब है ||

तेरी गुजर से होती शुरू मेरी रह्गुजार
सजर की साख में छुपा हुआ सा आफताब है ||

चंद लब्जों में बयां क्या हो तेरी सूरत
खुदा की है खुदाई तू जो इतना लाजबाब है ||

बड़ा खुदगर्ज है पटेल खुद से करता है सवाल
ये भी जनता है उसका इक तू ही जबाब है || ................SPS ..................

संदीप पटेल

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