Thursday, 6 October 2011

मैं ताबिंदा रखता हूँ चेहरे की मुश्कान ऐसे

तुझे एहसास ना होगा मेरी तड़प का कभी
मैं ताबिंदा रखता हूँ चेहरे की मुश्कान ऐसे

जिगर मैं शोले दबाये रहता हूँ ख़ुशी से
जमाने से छुपा लेता हूँ अपनी पहचान ऐसे
चाँद हथेली पे देख लेता हूँ आसमां की दरकार नहीं
हर माह मना लेता हूँ खुद की रमजान ऐसे

रहबर बन के घूमता हूँ गलिओं में आवारा
रह्गुजर से गुजरता हूँ बनके अनजान ऐसे

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