Thursday, 6 October 2011

निष्ठुरता

तुमने निष्ठुरता के कंकण से
मेरी प्रेम की गागर में
सुराख कर दिया है
अब वह प्रेम रस से
रिक्त हो चुकी है
ना जाने किस मैले
प्रेम की गन्दगी से
अब ये सुराख भर पायेगा
और एक बार फिर प्रेम रस से
ये गागर भरेगी किन्तु
पाक प्रेम के सिंचन से
किंचित मात्र भी
नहीं भर सकेगी ये रिक्त गागर
ना जाने तुमने ऐसा क्यूँ किया
मेरी गागर मैं अब इतना भी
प्रेम रस नहीं की
मैं इसकी एक बूँद से
किसी प्यासे की तृष्णा मिटा सकूँ
क्यूँ किया यह छल मेरे साथ
शायद अब मैं भी तुम्हारी तरह
निष्ठुर हो चुका हूँ
मुझे नहीं है किसी प्रेम की दरकार
और मैं विवश भी नहीं हूँ
पत्थर की तरह कठोर हो चुका
मुझे ये प्रेम की बूंदे अब
तनिक भी विचलित नहीं करती है
मैं शून्य भी नहीं रहा
और अब सागर भी
मुझमे समाया हुआ है
आकाश मुझे देख के
हैरान हो जाता है
शायद मुझे बहलाने के लिए
कभी कभी बादल ले के आता है
रोते हुए मुझे तोड़ने की
कोशिश करता है
और कहता है तुम ऐसे तो ना थे
पटेल तुम ऐसे तो ना थे

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