जाने कहाँ गया वो आलम होती थी जब दुआ सलाम
हाय बाय में अटके हैं अब भूल गए सब सीता राम
मुन्नी शीला और चमेली नाच रहे सब डिस्को में
दोहों और छंदों का होता अब भारत में काम तमाम
...
मंदिर की घंटी के भी स्वर अब सुनने नहीं मिलते हैं
सून सपाटे सन्नाटों से रास रंग में सिमटी शाम
मोम डेड ने साफ़ कर दिए माँ बाबू के आज निशान
गाँव से बाहर ड्यूड आ गए करने को ऑफिस के काम
प्रेम बन गया है अब तो लव निकल पड़ा जो सडको पे
उद्यानों की झुरमुट में ही नवजोड़ों के चारों धाम
क्यूँ होगा आराधन प्रभु का वो आते हैं किसके काम
जेक जुगाड़ों से हो जाते सबके सारे बिगड़े काम
जाने कहाँ गया वो मंजर घर घर मीठा बटता था
आज ख़ुशी हो या गम आये हर अवसर पर बनते जाम
देशी का विद्रोह है होता मिलें मुगलिशी आ गयी हैं
ये भी काश समझ में आता क्यूँ खादी का बढ़ता दाम
रुपयों की पूजा है होती रुपया ही है आज ईमान
रुपयों की ही सोच रहा है हर आदम अब सुबह-ओ-शाम
यू के चलन ने क्या कर डाला आप श्राप सा लगता है
छोटे भी आदर से लेते आज बड़ों के खुलकर नाम
छोटे काम बुरे से लगते आ पहुँचा है आज मकाम
कौन पढ़ेगा सागर तीरे कौन बनेगा आज कलाम
संदीप पटेल "दीप"
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