Thursday, 29 March 2012

भंवर धूल भरके अरे ग्रीष्म आया

भंवर धूल भरके अरे ग्रीष्म आया

लताएँ पतायें क्यूँ पीली पड़ी है
वो अलसाई सूखी सी ढीली पड़ी है
बहुत उड़ रही है ये धूली धरा से
ये रंगत गगन की भी नीली पड़ी है

है मुरझाये फूल और फूलों की डाली
ना जाने कहाँ है वो गालों की लाली
हैं सूखे अधर अब औ पपड़ी पड़ी है
कभी तो वही थे शबनम की प्याली

कहीं उड़ रहे हैं कुछ आवारा बादल
है थोड़ी सी राहत घटा की ये चादर
है पत्तों के झड़ने के दिन लगता आए
वो बरगद छैयां किसे ना सुहाए

है सुस्ती भरे दिन ना मस्ती की रातें
बीमारी है नित नई मरोड़ें जो आंतें
अमीरों को शरबत गरीबों को पानी
ना खाना सुहाये ना खाने की बातें

है अलसाई नदिया और ऊँघे हैं नाले
वो पोखर भी सूखे हैं झरनों पे ताले
लगी आग जंगल में विचलित पशु भी
कहाँ जायेंगे हम है किसके हवाले

गरीबों का लुटता है भोजन वो बासी
खटाई पड़ी है और छाई उदासी
मगर तपते तपते हुई है मजूरी
भले आई उसको भी दिनभर उबासी

अमीरों का चलता अलग सबसे फंडा
निकाले ज़रा कोई फ्रीज़र से ठंडा  
अरे कोई AC जरा ON कर दो
है बैठा वो कुर्सी पे करता है धंधा

भरे बाण अग्नि के सूरज है आया
है घायल बसंत अब करे कौन छाया
भंवर धूल भरके अरे ग्रीष्म आया
चलाता है आंधी वो तूफ़ान लाया

संदीप पटेल "दीप"

No comments:

Post a Comment