Friday, 11 November 2011

मैं कब से दिल के अरमान दबाये बैठा हूँ

मैं कब से दिल के अरमान दबाये बैठा हूँ
दिल के समंदर में तूफ़ान छुपाये बैठा हूँ

यूँ तो बेरुखी है अदा में बड़े संगदिल हो तुम
मैं बेचारा संग को भगवान बनाये बैठा हूँ
...
तिश्नगी बुझती नहीं है दीद की तुम्हारी
फिर मुलाक़ात की शम्मा जलाये बैठा हूँ

सीने में आग है नज़रों में तलब इश्क की
मोहब्बत की दिल में आग लगाये बैठा हूँ

पटेल उसकी सादगी से घायल है जिगर
दर्द-ए-दिल कम नहीं होता
कहाँ कहाँ क्या क्या इलाज कराये बैठा हूँ ........................SPS .............

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