ग़ज़ल है इश्क की रौनक सनम की रानाई
बदन की शोख अदाओं से भरी अंगडाई
ग़ज़ल नफस में बसी कोई तरन्नुम प्यारी
शबे विसाल में ज्यों बजती हुई शहनाई
गया जो डूब उसे थाह न मिली अब तक
ग़ज़ल कभी है समंदर तो कभी है खाई
गुलों का रंग ओ नजाकत गुहर है उसका तो
ग़ज़ल बहार में जैसे महकती अमराई
ग़ज़ल गुबार है दिल का तो कभी सादापन
ग़ज़ल भटकते ख्यालों की कोई अँगनाई
संदीप कुमार पटेल "दीप"